झांसी। प्रेस फोटोग्राफर समाचार, वर्तमान घटनाओं, ओर रचनात्मक तस्वीरें लेकर अखबारों में प्रकाशित जन जन तक हकीकत से रुबरु कराना होता है, इनका मुख्य कार्य किसी घटना का दस्तावेजी करण कर कहानी तैयार करना, प्रदर्शन, रैली, घटनाएं, ओर सबसे अच्छी तस्वीर प्रकाशित करना। लेकिन यह अब एक मामूली सी बात लगने लगी है। यह क्योंकि यह बाते उस समय प्रेस फोटो ग्राफर पर सटीक बैठती थी जब मैनुअली फोटो ग्राफी चला करती थी। लेकिन अब आधुनिकता के दौर में रचनात्मक फोटो ग्राफी ने दम तोड़ दिया है। हम बात कर रहे है प्रेस फोटो ग्राफरों की। आज विश्व फोटोग्राफी दिवस है। इसलिए चर्चाएं भी आज फोटो ग्राफर पर ही होनी चाहिए। आज से बीस वर्ष पूर्व जब मैनुअली फोटोग्राफी का दौर था उस समय प्रेस फोटोग्राफर जोखिम उठा कर अखबारों समाचार पत्रों के लिए घटनाओं पर मौके पर पहुंच कर जो देख रहे लाठी चल रही, गोली चल रही, पथराव हो रहा उसकी ही तस्वीर खींच कर समाचार पत्रों में प्रकाशित कर जन जन को घटना से अवगत कराते थे। ऐसे महान प्रेस फोटोग्राफरों में दैनिक जागरण में लंबे समय से कार्य कर रहे विपिन साहू, दैनिक अमर उजाला में कार्य कर रहे एम् खान, दैनिक भास्कर में कार्य कर चुके सतीश साहनी, याकूब भाई की अखबारों में प्रकाशित तस्वीरों की आज भी चर्चाएं होती है। क्योंकि वो मैनुअली फोटो ग्राफी के दौर में एक कैमरा होता था जिसमें वीडियो नहीं सिर्फ फोटो ही खींची जाती थी, डार्क रूम हुआ करता था, जिसमें दिन भर की घटनाओं, रैली, प्रदर्शन, आदि रचनात्मक फोटो खींचने के बाद पाठकों को अच्छी से अच्छी फोटो ग्राफी समाचार पत्र में प्रकाशित करने की होड में बनाई जाती थी। वो दौर ऐसा था जिसमें डार्क रूम में फोटो बनाने से पूर्व आंख बंद कर रील को केमिकल में धोया जाता था वो भी केवल सैंकड़ों के अंदाज में, अगर दो सेकंड भी ज्यादा रिल धूल गई तो वह खराब हो जाती थी, यही नहीं रिल धुलने के बाद उसे टचिंग देने के लिए कई घंटों आंखे रिल के ऊपर लगाकर स्पॉट आदि साफ किए जाते थे, इसके बाद इलाजमेंट में अंधेरे में फोटो बनाकर फिर समाचार पत्रों में प्रकाशित की जाती थी। लेकिन आज आधुनिकता के दौर में रचनात्मक और फोटो ग्राफी का टेलेंट पूरी तरह समाप्त होता जा रहा है। कंप्यूटर की दुनिया में मोबाइल से या किसी भी चिप वाले कैमरे से सड़क चलते व्यक्ति से फोटो खिंचवा कर उसे कम्प्यूटर से चाहे जितनी सुंदर बनाई जा सकती है। आधुनिकता के दौर में कैमरों में बड़े बड़े लैंस आ गए जिसमें घटना स्थल से आधा किलो मीटर दूर खड़े होकर या दो मीटर दूर खड़े होकर भी फोटो खींच सकते है, लेकिन मैनुअली दुनिया की फोटो ग्राफी में प्रेस फोटोग्राफर भीड़ तंत्र में घुसकर लड़ झगड़ कर धक्के खाते हुए फोटो खींचते थे, ओर उसी समय वह फोटो खींचते हुए घटना को अंजाम देने वाले की नजरों में भी चढ़ जाते थे, आज की आधुनिकता की फोटो ग्राफी में किसी को पता तक नहीं चलता कि उनकी फोटो किसने खींची, यह फर्क था मैनुअली ओर वर्तमान की आधुनिकता की फोटोग्राफी में। आधुनिकता की दुनिया में प्रेस फोटोग्राफी में जोखिम से लबरेज फोटोग्राफी करने में विपिन साहू, एम खान, याकूब भाई का नाम आज भी चर्चाओं में रहता है और इनकी फोटोग्राफी की यादें ताजा कर चर्चाएं की जाती है। दैनिक जागरण में लंबे वर्ष से कार्य कर रहे विपिन साहू आज लगभग साठ वर्ष के पास हो चुके है। वह दैनिक जागरण में 1987 से प्रेसफोटो ग्राफी कर रहे। मैनुअली ओर आधुनिकता की फोटोग्राफी पर जब उनसे चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि वो दौर कुछ ओर ही हुआ करता था। जब संसाधन नहीं थे, मोबाइल नहीं था, कंप्यूटर नहीं था। इसके बावजूद पाठकों को सुबह शहर भर की घटनाओं, कार्यक्रमों ओर रैली, धरना प्रदर्शन से फोटो सहित रूबरू कराने के लिए एक होड़ सी लगती थी, की मैं सबसे पहले पहुंच जाऊ मेरी सबसे अच्छी फोटो प्रकाशित हो। उन्होंने बताया कि उस समय फोटो प्रकाशित करने के लिए तीन से चार घंटे डार्क रूम में अंधेरे में केमिकलों के बीच गुजारना पड़ता था, यही नहीं घटनाओं पर मौके पर पहुंच कर भीड़ तंत्र से जूझकर अच्छी फोटो प्रकाशित करने का जुनून रहता था, फिर चाहे वह पथराव में वह खुद ही चोटिल क्यों न हो जाए। उन्होंने कहा कि आधुनिकता के दौर में अब मन खट्टा सा इसलिए लगता है, की बिना मेहनत किए कोई भी व्यक्ति मोबाइल से फोटो खींच कर कंप्यूटर के द्वारा उसे सुंदर और आकृषित बना लेता है, लेकिन सच बात यह है कि मैनुअली दौर में खींची गई तस्वीर से अच्छी कोई तस्वीर नहीं होती। वही उन्होंने फिर चाहे खंडेराव गेट पर गोलीकांड हो, या विश्विद्यालय, छात्र राजनीति पर होने वाली घटनाएं आगजनी की घटनाओं को दोहराते हुए पुराने पल याद करते हुए बताया कि उस समय कितनी जोखिम भरी फोटोग्राफी थी यह आज की प्रेस फोटोग्राफी की दुनिया में आने वाली पीढ़ी को समझना पड़ेगा। वही अमर में प्रेसफोटोग्राफर के पद पर कार्य कर रहे एम् खान वर्तमान में बनारस में अमर उजाला में तैनात है, उन्होंने मैनुअली फोटो ग्राफी पर चर्चा करते हुए बताया कि उस दौर में फोटो ग्राफरों को अपना प्रदर्शन करने का मौका मिलता था। कौन कितनी अच्छी फोटो डार्क रूम में अंधेरे में बैठ कर घंटों पसीना बहाकर बना सकता है, कौन सबसे पहले घटना स्थल पर पहुंच कर गोली बारी, मारपीट, पथराव आदि की प्रत्यक्ष रूप से फोटो खींच कर समाचार पत्र में प्रकाशित कर सकता है। एक घटना उन्होंने याद करते हुए बताया कि वह उस समय दैनिक भास्कर में हुआ करते थे, जब अयोध्या मन्दिर प्रकरण हुआ। इस दौरान खंडेराव गेट पर करीब ढाई घंटे फायरिंग हुई, उस फायरिंग में बीचों बीच पहुंच कर फायरिंग की तस्वीर खींच कर जब समाचार पत्र भास्कर में प्रकाशित की तो भास्कर बारह रुपए का एक बिका था। वही उन्होंने जेल में बंद कुख्यात अपराधी ग्यासी की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि ग्यासी को फांसी की सजा मिली थी लेकिन कई वर्ष फांसी नहीं मिली उसकी एक फोटो प्रकाशित की जो काफी चर्चाओं का विषय बनी रही। इसके बाद एम खान अमर उजाला में पहुंच चुके थे। वही भास्कर में रहे सतीश साहनी साहब का भी प्रेस फोटोग्राफी में बड़ा योगदान रहा। उनका व्यवहार ओर उनके कार्य की आज भी प्रशंसा की जाती है, उनकी मेहनत और लग्न से निकाली गई रचनात्मक तस्वीरों के चलते उन्हें विश्विद्यालय पत्रकारिता विभाग में फोटोग्राफी सिखाने का कार्य भी मिला था। वर्तमान में सतीश साहनी के पुत्र प्रभात साहनी प्रेस फोटोग्राफी में योगदान दे रहे है। वही आपको बता दे कि प्रेस फोटोग्राफी में याकूब भाई ने भी मैनुअली की दुनिया में बड़ा योगदान दिया। उनकी फोटोग्राफी की चर्चाएं आज भी होती, फिलहाल वर्तमान समय में याकूब भाई के पुत्र अख्तर खान भास्कर में प्रेसफोटोग्राफी कर रहे है, मैनुअली की दुनिया में ही प्रेसफोटो ग्राफी से नाता जोड़ने वाले विजय कुशवाह उस दौर में आज समाचार पत्र में कार्यरत थे जो आज भी अपनी रचनात्मक फोटोग्राफी का कार्य कर रहे है। यह चर्चा आज विश्व फोटोग्राफी दिवस है। सभी प्रेसफोटोग्राफो को विश्वफोतिग्राफी के हार्दिक शुभकामनाएं बधाई।
रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा


