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पहला एशिया कप जीतना और उसमें मेरा प्रदर्शन हमेशा याद रहेगा: सुरेन्द्र खन्ना

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झांसी। 40 साल पहले आज ही भारत ने पाकिस्तान को हराकर जीता था पहला एशिया कप, जिसमे सुरेन्द्र खन्ना रहे थे टूर्नामेंट के हीरो।वह 13 अप्रैल 1984 का दिन था जब भारत ने सुनील गावसकर की अगुआई में अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 54 रन से हराकर पहली बार एशिया कप जीता था जिसमें विकेटकीपर बल्लेबाज सुरिंदर खन्ना की भूमिका अहम रही थी। खन्ना के जेहन में 36 साल पुरानी घटनाएं आज भी तरोताजा हैं।भारत ने यह टूर्नामेंट एक साल पहले टीम को विश्व चैंपियन बनाने वाले कपिल देव के बिना खेला था। वह तब शारजाह में थे लेकिन उन्हें घुटने के ऑपरेशन के लिए इंग्लैंड जाना था।इस टूर्नमेंट में सिर्फ तीन टीमों ने भाग लिया था। भारत ने पहले मैच में श्रीलंका को दस विकेट से हराया। भारत ने मदनलाल, चेतन शर्मा और मनोज प्रभाकर की शानदार गेंदबाजी से श्रीलंका को 96 रन पर ढेर कर दिया। इसके बाद खन्ना (नाबाद 51) और गुलाम परकार ( 32) ने टीम को आसान जीत दिलाकर फाइनल में पहुंचाया था।खन्ना ने खेल विशेषज्ञ बृजेन्द्र यादव से बातचीत में कहा, ‘मैं तब वापसी कर रहा था। सैयद किरमानी भी पंद्रह सदस्यीय टीम में शामिल थे लेकिन गावसकर ने मुझे अंतिम एकादश में रखने का फैसला किया। मैं 1979 विश्व कप के बाद वापसी कर रहा था और इसलिए मेरे लिए यह टूर्नमेंट बेहद महत्वपूर्ण था। मैं वापसी के बाद पहले मैच में ही मैन ऑफ द मैच बना तो पूरी टीम ने उसका जश्न मनाया। इनमें कपिल भी शामिल थे।’भारत का सामना फाइनल में पाकिस्तान से था। भारत ने पहले बल्लेबाजी का फैसला किया और निर्धारित 46 ओवरों में चार विकेट पर 188 रन बनाए। सलामी बल्लेबाज खन्ना ने फिर से अपने बल्ले का कमाल दिखाया और 56 रन बनाए। उनके अलावा संदीप पाटिल ने 43 और गावसकर ने नाबाद 36 रन बनाए। पाकिस्तान की टीम इसके जवाब में 39.4 ओवर में 134 रन पर आउट हो गई। रोजर बिन्नी और रवि शास्त्री ने तीन-तीन विकेट लिए जबकि चार बल्लेबाज रन आउट हुए।खन्ना ने कहा, ‘पिच पर काफी घास थी और बल्लेबाजी करना आसान नहीं था। हम कपिल के बिना खेल रहे थे लेकिन हमें पता था कि अपने स्कोर का बचाव करने में सफल रहेंगे। हम पहले एशिया कप में ही चैंपियन बन गए थे। गावसकर ने जब ट्रोफी उठाई तो वह हमारे लिए यादगार पल था। मुझे टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया था, मेरे क्रिकेट करियर का यह महत्वपूर्ण क्षण था।

रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा

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