झांसी। 3 दिसम्बर 1979 को हॉकी के जादूगर दुनिया के महानतम हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद ने दुनिया को अलविदा कह दिया था।मेजर ध्यानचंद भले ही शारीरिक रूप से अब इस दुनिया में नही है।किन्तु उनकी जादू भरी कलात्मक हॉकी, उपलब्धियां व संस्मरण आज भी हर भारतीय के मन मस्तिष्क में जीवंत है।
हम सभी देशवासियों, खिलाड़ियों व खेल प्रेमियों का अब दायित्व बनता है, कि हॉकी जादूगर मेजर ध्यांचन्द की 43 वीं पुण्यतिथि पर अपने -अपने खेल मैदानों व शैक्षिक संस्थानों में मेजर ध्यानचंद को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके व्यक्तित्व और मेजर ध्यानचंद के प्रेरक प्रसंगों से वर्तमान पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को अवश्य अवगत कराए। ताकि भविष्य मे हॉकी जादूगर की स्मृतियों को जीवंत रखा जा सके और मजबूत ईमानदार नैतिक भारत का निर्माण कर सके।
आज हॉकी के महान खिलाड़ी और जादूगर पद्मभूषण मेजर ध्यान चंद की पुण्यतिथि है।वह भारत के नहीं बल्कि विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं। वह तीन बार भारत के लिए ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत चुके है।जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उनकी हॉकी के सर डॉन ब्रेडमैन और हिटलर भी कायल थे। दद्दा ध्यांचन्द की हॉकी कौशल का विश्व क्यों कायल आइये जाने।
ध्यान चंद महज 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया था। ध्यान चंद देर रात तक प्रैक्टिस किया करते थे और यही वजह है कि दोस्तों ने उनका नाम चांद रख दिया था।
भारतीय हॉकी टीम ने 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक के स्वर्ण पदक जीते है और तीनों ही बार ध्यान चंद ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
1928 में हुए ओलंपिक खेलों में ध्यान चंद ने 14 गोल किए थे।उस टूर्नामेंट में वह सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। इसके बाद एम्सटर्डम के एक समाचार पत्र ने उन्हें हॉकी का जादूगर कहा था।
ध्यांचन्द ने झांसी हीरोज टीम के संस्थापक रहे और इस क्लब से खेलते हुए उन्होंने कई मेजर टूर्नामेंट भी जीते।
साल 1935 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का दौरा किया था।यहां ध्यानचंद ने 48 मैच खेले और 201 गोल किए।
सर डॉन ब्रेडमैन ने 1935 में ध्यान चंद से मुलाकात की थी।क्रिकेट के महानतम बल्लेबाज डॉन ब्रेडमैन भी उनके कायल हो गए। उन्होंने कहा, ध्यान चंद हॉकी में ऐसे गोल करते हैं, जैसे हम क्रिकेट में रन बनाते हैं।
बर्लिन ओलंपिक में भारत और जर्मनी के बीच फाइनल मुकाबला था।मुकाबले के दूसरे हाफ में ध्यान चंद ने जूते निकालकर नंगे पांव हॉकी खेली और जर्मनी को 8-1 से रौंद दिया।
भारत को बर्लिन ओलंपिक में भी गोल्ड मिला और ध्यान चंद के प्रदर्शन ने हिटलर को उनका फैन बना दिया। हिटलर ने ध्यान चंद को खाने पर बुलाया और उन्हें जर्मनी से खेलने के लिए कहा साथ ही उन्हें कर्नल बनाने का प्रलोभन भी दिया गया लेकिन ध्यान चंद एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे।उन्होंने हिटलर का ये प्रस्ताव ठुकराकर हिंदुस्तान को ही चुना।
दुनिया के सबसे महान हॉकी खिलाड़ियों में से एक मेजर ध्यान चंद ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी में 400 गोल दागे हैं।
ध्यान चंद के रिकॉर्ड्स इतने गजब हैं लेकिन इसके बावजूद आज तक इस महान खिलाड़ी को भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया है।वर्षो से भारतवासी मेजर ध्यांचन्द के जन्मदिवास और उनके निर्वाण दिवस के दिन उन्हें भारत रत्न देने की मांग उठते आ रहा है,लेकिन अब तक इस मांग की अनदेखी ही की जा रही है।
रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा






