झांसी। हौसलों में उड़ान हो तो मंजिल भी करीब लगती है। अपने मनोबल को इतना सशक्त कर की कठिनाई भी आने से न डर जाए, आत्मविश्वास रहे तेरा हमसफर। यही सोच के साथ एक हाथ से विकलांग दीपक पहलवान आज भी बड़ी बड़ी कुस्तियो में बड़े बड़े पहलवानों से लोहा लेने से नही डरते। दीपक ने कुश्ती में जिला और स्टेट लेबल तक के मेडल जीत है। बबीना के ग्राम रसोई निवासी दीपक यादव पुत्र हरिमोहन का एक हाथ बचपन से ही नही है। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने पर परिजन उनका समय पर बाल अवस्था में इलाज नही करा सके जिसके चलते वह आज तक एक हाथ से विकलांग है। हमारी मुलाकात दीपक से रविवार को करारी में आयोजित दंगल में करैरा के एक पहलवान से कुश्ती लड़ने के दौरान दीपक से हुई। हालांकि दस मिनट तक चली कुश्ती बराबरी पर छूट गई थी। इस दौरान दीपक से वार्ता की गई तो उन्होंने बताया की उन्हे कुश्ती को अपना बचपन से सोक है। एक हाथ उनका बचपन से ही नही है। लेकिन वह विकलांग होने के बाद भी उनका जो मंसूबा है, वह कमजोर नही हुआ। उन्होंने बताया की वह काफी बड़े शहरों में कई कुश्तियों में भाग ले चुके है, ओर उन्होंने अब तक डेढ़ सौ के करीब कुश्तियां खेली जिसमे वह करीब सौ कुश्तियां जीत चुके ओर वह जिला तथा स्टेट लेबल पर मेडल भी जीत चुके है। दीपक ने अपने कमजोर हाथ की वजह से खुद को कम नहीं समझा और बड़े बड़े पहलवानों को धूल भी चटाई। दीपक ने अपने कमजोर हाथ की वजह से खुद को कभी कम जोर नही समझा और बड़े बड़े दिग्गजों से कुश्ती में दांव पेंच लड़ाए। उन्होंने अपने एक हाथ की दम पर कई कुश्तियां जीती भी है। दीपक को सूचना मिल जाए फिर कुश्ती कही पर भी हो वह पहुंच ही जाते है। उन्होंने कुश्ती का यह हुनर अपने पिता से सीखा है। दीपक ने वार्ता के दौरान बताया की आज कल के युवा नशे की लत में फसे है। उनके लिए यह जरूरी है की उन्हे ऐसे खेलों के खेलने के लिए प्रेरित किया जाए। जिससे की वो नशे की बुरी लत से बाहर निकल सके। वह चाहते है की वह विकलांग है, कुश्ती के खेल को बढ़ावा देने और हौसला बढ़ाने के लिए वह कुश्ती में भाग लेते है, तो उनके इस योगदान को याद रखा जाए।
रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा






