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खुद्दारी,देश के प्रति वफादारी और हॉकी के लिए समर्पण का नाम है ध्यानचंद : बृजेंद्र यादव

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झाँसी| खुद्दारी, देश के प्रति वफादारी और हॉकी के प्रति समर्पण ही था जो आज समूचा भारत वर्ष मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मना रहा है।उनके न रहने पर भी देश,विदेश के कई बड़े शहरों के प्रमुख चौराहों पर मेजर ध्यानचंद की प्रतिमा स्थापित होती जा रही।जो देश की आन बान और शान एवं को बयां करती है।
मेजर ध्यानचंद की करिश्माई जादू भरी हाकी और भारतीय हाकी की विजय गाथा की बात हो रही तो एक हकीकत भरा किस्सा
सन 1935 का है जब हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नेतृत्व में भारतीय हाकी टीम ने न्यूजीलैंड ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया । तब वहां उनके मैचों को देखने के लिए Town clerk की व्यवसायिक प्रतिष्ठान बंद रखने की अपील समाचार पत्रों में प्रकाशित की जाती थी।मेजर ध्यानचंद की करिश्माई जादू भरी हाकी का अनुपम उदाहरण इससे बेहतर और क्या हो सकता है।
बात 1936 बर्लिन ओलंपिक की है जब मेजर ध्यानचंद की कप्तानी में भारतीय टीम ने बर्लिन में नाजी तानाशाह हिटलर को, उसी की धरती पर, उसी की टीम को, उसी के देश में, उसी के सामने 8-1 के अंतर से पराजित किया था और हिटलर, जो यह मैच देख रहा था इस घमंड के साथ कि जीत तो उसी की होगी पर हॉकी जादूगर के करिश्माई खेल की बदौलत उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा, जिसे एक गुलाम देश की हॉकी टीम इंडिया ने हरा दिया। हिटलर ने इस करारी हार के बाद ध्यानचंद से जर्मनी में बसने की पेशकश की और अपनी सेना में कर्नल का पद के साथ अन्य सुविधाएं देने की पेशकश की, लेकिन ध्यानचंद ने मुस्कुराते हुए कहा कि मुझे अपने देश में बहुत खुश हूं, कहकर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
*क्रिकेट के महान खिलाड़ी डॉन ब्रैडमैन और महानतम हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद की मुलाकात आस्ट्रेलिया के शहर एडिलेड में हुई थी। ध्यानचंद का खेल देखने के बाद डॉन ब्रैडमैन ने कहा था, वह हॉकी में उसी तरह गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनाए जाते हैं।
उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर के दौरान 400 से अधिक गोल किए।हॉकी जादूगर ध्यानचंद की आत्मकथा “गोल” 1952 में प्रकाशित हुई। भारत सरकार ने मेजर ध्यानचंद को 1956 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया।

रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा

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