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भारतीय जनसंघ के संस्थापक, महान शिक्षाविद् और प्रखर राष्ट्रवादी विचारक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस : संगोष्ठी

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झांसी। आज भारतीय जनता पार्टी द्वारा जिला अध्यक्ष हेमंत परिहार की अध्यक्षता में एक विवाह घर में भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर संगोष्ठी संपन्न हुई एवं उनके चित्र पर मुख्य अतिथि पूर्व केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप वर्मा जिला, अध्यक्ष हेमंत परिहार, सदर विधायक रवि शर्मा, एम. एल. सी. रमा निरंजन, रामकिशोर साहू, पूर्व जिला अध्यक्ष जयदेव पुरोहित, संजय दुबे, कुलदीप शर्मा, राजेंद्र पाल, पुष्प अर्पित कर उनको सच्ची श्रद्धांजलि दी एवं उन्हें याद किया।

मुख्य अतिथि भानु प्रताप वर्मा ने कहा कि

डॉ. मुखर्जी जी को राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा बताया। कि एक भारत, श्रेष्ठ भारत के निर्मा एक्सण में डॉ. मुखर्जी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

कश्मीर से धारा 370 हटी, डॉ. मुखर्जी सपना साकार

और उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर से धारा 370 हटाकर डॉ. मुखर्जी के सपने को साकार किया है।डॉ. मुखर्जी के अखंड भारत के संकल्प को याद किया।

 

*डॉ. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी कौन थे*

 

डॉ. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्‍म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ। पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। उन्‍होंने 1917 में मैट्रिक किया और 1921 में बीए की डि‍ग्री प्राप्त की। 1923 में एलएलबी करने के बाद इंग्‍लैंड से 1926 में बैरि‍स्‍टर की डि‍ग्री हासि‍ल की। महज 33 साल की उम्र में कोलकाता यूनि‍वर्सि‍टी के वीसी बने श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया, आज हम उनके कृतित्व को याद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने से बड़ी और सच्ची श्रद्धांजलि उनके प्रति और कुछ नहीं हो सकती है। उनकी चाहत थी कि इस देश में एक निशान, एक विधान और एक प्रधान हो।

जिला अध्यक्ष हेमंत परिहार ने कहादेश में दो वि‍धान के खिलाफ थे डॉ. मुखर्जी। आजादी के समय जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां के मुख्यमंत्री को भी प्रधानमंत्री कहा जाता था। धारा 370 लागू होने से कश्‍मीर में बगैर परमिट के कोई दाखि‍ल नहीं हो सकता था। इस परमि‍ट का वि‍रोध करते हुए डॉ. श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा कि‍ एक देश में दो वि‍धान, दो नि‍शान, दो प्रधान नहीं चलेगा।

डॉक्टर साहब की रहस्‍यमय मौत हुई थी। इसके वि‍रोध में उन्‍होंने अगस्त 1952 में जम्मू में विशाल रैली करते हुए कहा- या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। बगैर परमि‍ट के जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को 11 मई 1953 में शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया। गि‍रफ्तारी के कुछ दि‍न बाद ही 23 जून 1953 को उनकी रहस्‍यमय मृत्‍यु हो गई।

सदर विधायक रवि शर्मा ने कहा डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी बलिदान दिवस पर “तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहें न रहें।

आज डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि है. 23 जून 1953 को डॉ. मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर में भारत की एकता और प्रभुसत्ता की रक्षा के लिए बलिदान दिया. उनका यह सर्वोच्च बलिदान स्वाधीन भारत के इतिहास में सदैव अमर और प्रेरणादायक है। अमित चिरबरिया , अमित साहू,

संजीव पटेरिया , गोकुल दुबे , सौरभ मिश्रा , बंटी सोनी , शैलेंद्र प्रताप सिंह , जगदीश कुशवाहा , अनुज निखरा मिथलेश साहू , सुमन पुरोहित, नीता अवस्थी, रजनी गुप्ता, मोनू शिवहरे, निर्मल कुशवाहा, पंकज झा, शिवा यादव, आदर्श गुप्ता, भारती शरण नायक भूपेन्द्र आर्य, सैकड़ो कार्यकर्ता उपस्थित रहे एवं संचालन संजीव तिवारी आभार अभिषेक जैन ने किया।

रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा

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