झांसी।
इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने की सोमवार को 4,तारीख हो गई। इसी के साथ माहौल अब नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन की अकीदत में डूबने लगा है। जलसा-ए-जिक्रे शहादत से मोहल्ले गूंज रहे हैं। मस्जिदों में भी कर्बला की शहादत का जिक्र चल रहा है। मुसलमानों से शहादत का वही जज्बा पैदा करने का आह्वान हो रहा है, जिसकी बदौलत इस्लाम को रहती दुनिया तक ताजगी मिलती रहेगी।
हुसैन मुझसे और मैं हुसैन से
मदीना मस्जिद में जिक्र-ए-शहीदे आजम कांफ्रेंस
आशिकाने आला हजरत की तरफ से जिक्र-ए-शहीदे आजम कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। तर्जुमान ए रज़वियत मुफ्ती मुहम्मद आमान सिद्दीकी मंजरी पेश इमाम मदीना मस्जिद मरकज अहले सुन्नत वल जमात कपूर टेकरी कुरैश नगर ने आगाज तिलावते कलाम पाक से किया नवासा-ए-रसूल की कुर्बानी को लोगों को सामने रखा। पैगंबर-ए-इस्लाम ने फरमाया हुसैन मुझसे और मैं हुसैन से हूं। अल्लाह उससे मुहब्बत करता है, जो हुसैन से मुहब्बत करता है। मैदाने कर्बला में लड़ी गई जंग हक और बातिल के बीच थी। इसमें हक की जीत हुई। इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद होकर मुसलमानों के दिलों में जिंदा हैं। यजीद का कोई नामलेवा नहीं है। कर्बला यही सीख देती है कि बातिल के आगे झुकने के बजाय सिर कटा देना चाहिए। कर्बला के असल पैगाम को समझना होगा। मोहर्रम में बेजा खुराफात से बचते हुए ज्यादा से ज्यादा इबादत की जरूरत है। नौ और दस मोहर्रम का रोजा रखना चाहिए नवासा-ए-रसूल को खिराजे अकीदत पेश करें। इस दौरान कारी फुरकान पेश इमाम हाफिज कारी अबरार रज़ा कुरैशी रज़ा मस्जिद हाफिज साबिर कादरी हाफिज अमजद कुरैशी हाफिज रमजान कुरैशी आदि रहे।
रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा





