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निबंध में द्युति मालिनी, सुलेख में रेखा तथा टिप्पण में राघवेंद्र और राजेश ने मारी बाजी बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में हुआ राजभाषा हिन्दी पखवाड़ा 2025 का भव्य समापन

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झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी के हिंदी विभाग में राजभाषा हिन्दी पखवाड़ा–2025 के समापन समारोह का आयोजन उत्साह और गरिमा के साथ किया गया। समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रो. मुकेश पांडेय ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. रवींद्र शुक्ल, पूर्व मंत्री, उत्तर प्रदेश उपस्थित रहे। जबकि सारस्वत अतिथि के रूप में अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति के सह संगठन मान्यता संजय श्रीहर्ष मिश्र ने सहभागिता की।

कुलपति प्रो. मुकेश पांडेय ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि “हिन्दी केवल राजभाषा की परिधि में बंधी हुई भाषा नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा और संस्कृति की अभिव्यक्ति है। जिस प्रकार नदियाँ अपने प्रवाह से जीवन देती हैं, उसी प्रकार हिन्दी समाज को एकता और संवाद की शक्ति प्रदान करती है। आज के समय में आवश्यक है कि हम प्रशासनिक कार्यों, शोध गतिविधियों, विज्ञान एवं तकनीक की भाषा के रूप में हिन्दी को विकसित करें। यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को मातृभाषा और राजभाषा के रूप में हिन्दी से जोड़ पाएंगे, तो यह राष्ट्र की आत्मनिर्भरता और आत्मगौरव का आधार बनेगी।”

मुख्य अतिथि डॉ. रवींद्र शुक्ल ने कहा कि हिंदी की सबसे बड़ी शक्ति इसकी सहजता और सर्वग्राह्यता है। यह वह भाषा है, जो ग्राम्य जीवन से लेकर शहरी परिवेश तक सभी को जोड़ती है। परंतु हिन्दी को हमें केवल उत्सवों तक सीमित नहीं रखना चाहिए। हमें इसे कार्य संस्कृति, सरकारी तंत्र और रोजगार की भाषा बनाना होगा। यदि शिक्षा, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था में हिन्दी को वास्तविक स्थान मिलता है, तभी इसका प्रभाव व्यापक होगा। हिन्दी का सम्मान तभी सुनिश्चित होगा, जब हम इसे अपने दैनिक जीवन और पेशेवर व्यवहार का अभिन्न हिस्सा बनाएंगे। अंग्रेजी में मात्र 26 अक्षर है, लेकिन, हम उसे प्रथम दर्जा देते हैं। वहीं, 52 अक्षरों वाले हिंदी को महत्ता नहीं देते हैं। यह चिंता का विषय है। हिंदी में हर एक शब्द का अर्थ है, अंग्रेजी में यह संभव नहीं है। अंग्रेजी में आंटी के कई अर्थ है लेकिन सटीक एक भी नहीं है। परंतु, हिंदी में हर रिश्ते के लिए शब्द है। हिंदी में एक ही क्रिया के भिन्न भिन्न प्रयोग हैं। हर शब्द के अनेक पर्यायवाची हैं। यह हमारी ताकत है। हमें इसे समझना और आत्मसात करना होगा।

 

सारस्वत अतिथि संजय श्रीहर्ष मिश्र ने अपने विचार विस्तारपूर्वक रखते हुए कहा कि हिन्दी साहित्य केवल शब्दों का संसार नहीं है, बल्कि यह संवेदनाओं, अनुभवों और जीवन मूल्यों का दर्पण है। तुलसी, सूर और कबीर की वाणी से लेकर प्रेमचंद, निराला और महादेवी वर्मा की रचनाओं तक हिन्दी ने समाज को न केवल दिशा दी है बल्कि कठिन समय में संघर्ष और पुनर्निर्माण की प्रेरणा भी दी है। आज जब वैश्वीकरण और तकनीकी बदलावों का युग है, हिन्दी साहित्य ही वह आधार है जो हमारी जड़ों से हमें जोड़े रखता है। हिन्दी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह बदलते समय और परिस्थितियों के साथ स्वयं को ढालने में सक्षम है। डिजिटल मीडिया, सोशल नेटवर्किंग और इंटरनेट ने हिन्दी की पहुँच को गाँव से लेकर वैश्विक स्तर तक फैला दिया है। आज लाखों युवा ब्लॉग, पॉडकास्ट, यूट्यूब और सोशल प्लेटफॉर्म्स के जरिए हिन्दी में अभिव्यक्ति कर रहे हैं। यह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संकेत है। उन्होंने कहा कि हिन्दी का भविष्य युवा पीढ़ी के हाथों में है। यदि युवा अपनी सृजनात्मकता हिन्दी में व्यक्त करेंगे तो हिन्दी की शक्ति कई गुना बढ़ जाएगी। उन्हें यह भी ध्यान रखना होगा कि हिन्दी का उपयोग केवल मनोरंजन तक सीमित न हो, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, शोध और प्रशासन की भाषा के रूप में भी बढ़े। जिस दिन हम हिन्दी में शोधपत्र और वैज्ञानिक साहित्य का निर्माण उतनी ही गंभीरता से करेंगे जितनी अंग्रेजी में होता है, उसी दिन हिन्दी का वैश्विक सम्मान और भी अधिक होगा। मिश्र ने कहा कि हिन्दी का अर्थ है आत्मीयता, भारतीयता और जीवन की सरलता। यदि हम इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ और गर्व से इसका प्रयोग करें, तो कोई ताकत नहीं जो हिन्दी को विश्व मंच पर प्रमुख स्थान पाने से रोक सके।

 

समापन सत्र में विद्यार्थियों ने पखवाड़े भर आयोजित वाद-विवाद, निबंध लेखन, काव्य-पाठ, प्रश्नोत्तरी और अन्य प्रतियोगिताओं के विजेताओं को सम्मानित किया गया।

 

*कर्मचारी एवं अधिकारी वर्ग*

निबन्ध

प्रथम – डॉ द्युति मालिनी

तृतीय – अनीश कुमार, ईश्वर दत्त शर्मा

 

सुलेख

प्रथम – रेखा रिछारिया, राघवेन्द्र श्रीवास्तव

द्वितीय – अनिल कुमार, नेहा

तृतीय – नरेंद्र कुमार, देश दीपक सोनकर

 

टिप्पण

प्रथम – विकास चंद्र शर्मा, राजेश कुमार

द्वितीय – अंजू आनंद, अवधेश तिवारी

तृतीय – पंकज शर्मा, दिनेश कुमार,नीलम, मनीष मंडल, महेश चंद्र, अशोक कुमार, पुनीत कुमार, गोविंद, राम सिंह, मलय व्यास, संजय वर्मा

 

*विद्यार्थी वर्ग*

पोस्टर

प्रथम – दीपेश,

द्वितीय – आदर्श राजपूत,

तृतीय – सबत खालदी,

 

स्लोगन

प्रथम – ममता परिहार,

द्वितीय – शिखा,

तृतीय – खुशबू वर्मा,

 

निबंध

प्रथम – महक,

द्वितीय – दिव्या निगम,

तृतीय – अभय कुशवाहा,

 

हिंदी कविता लेखन

प्रथम – सुधांशु,

द्वितीय – खुशी रावत,

तृतीय – पलक गुप्ता,

 

लघु कहानी

प्रथम – खुशी रावत,

द्वितीय – वंदना पाल,

तृतीय – भावना,

हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुन्ना तिवारी ने संचालन करते हुए कहा कि राजभाषा हिन्दी केवल संचार का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान और आत्मगौरव का प्रतीक है। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का प्रयास है कि विद्यार्थियों में भाषा के प्रति प्रेम और उत्तरदायित्व की भावना जागृत हो। पखवाड़े भर चले विविध आयोजनों ने न केवल विद्यार्थियों की प्रतिभा को मंच दिया, बल्कि उन्हें यह अनुभव कराया कि हिन्दी विचारों को गहराई और सहजता से व्यक्त करने की सबसे सक्षम भाषा है। हमें गर्व है कि हमारी युवा पीढ़ी हिन्दी के माध्यम से सृजन और नवाचार की दिशा में आगे बढ़ रही है।

समारोह के अंत में डॉ. अचला पांडेय ने सभी अतिथियों, प्रतिभागियों, अध्यापकों एवं आयोजकों का आभार व्यक्त किया और कहा कि हिन्दी विभाग का प्रयास रहेगा कि आने वाले समय में भी इस प्रकार के आयोजन होते रहें, जिससे हिन्दी भाषा और साहित्य की समृद्ध परंपरा निरंतर नई ऊँचाइयों तक पहुँचती रहे।

पखवाड़ा के दौरान विभिन्न प्रतियोगिताओं के आयोजन में डॉ श्वेता पांडेय, डॉ. शैलेन्द्र तिवारी, डॉ प्रेमलता श्रीवास्तव, डॉ. रेनू शर्मा, डॉ आशीष दीक्षित, डॉ गरिमा कुशवाहा, रिचा सेंगर, कपिल शर्मा, आकांक्षा सिंह की विशेष भूमिका रही।

कार्यक्रम में डॉ श्रीहरि त्रिपाठी, डॉ बिपिन प्रसाद समेत हिंदी विभाग के सभी शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा

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