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देश के 175 वैज्ञानिकों ने दलहनी फसलों पर किया मंथन 52 कृषि विश्वविद्यालयों व संस्थानों के वैज्ञानिकों ने साझा किए विचार

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झाँसी। रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झाँसी में आयोजित 30वीं अखिल भारतीय समन्वित रबी दलहन अनुसंधान परियोजना की तीन दिवसीय वार्षिक बैठक आज सम्पन्न हुई। इसमें देशभर के 52 कृषि विश्वविद्यालयों, अनुसंधान केन्द्रों एवं संस्थानों से आए 175 से अधिक वैज्ञानिकों ने चना, मटर और मसूर की उत्पादकता बढ़ाने पर गहन विचार-विमर्श किया।

 

*खेत और शोध संस्थान की उपज में अंतर पर चिंता*

 

बैठक में यह अहम बिंदु सामने आया कि चना व मटर की प्रजातियां शोध संस्थानों में 20–25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती हैं, जबकि किसानों के खेतों में यह 17–18 क्विंटल पर सिमट जाती है। इस अंतर को कम करने के लिए गुणवत्तायुक्त बीज, उन्नत प्रजातियां, आधुनिक शस्य क्रियाएं एवं जैव-नाशी के प्रयोग पर बल दिया गया।

 

 

*नई प्रजातियों और शोध प्राथमिकताओं पर जोर*

 

*सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन) डॉ. संजीव गुप्ता* ने चना, मटर व मसूर की नई प्रजातियों की पहचान संबंधी जानकारी दी।

परियोजना समन्वयक (रबी दलहन) डॉ. शैलेश त्रिपाठी ने आगामी वर्ष 2025-26 के अनुमोदित शोध कार्यों की रूपरेखा प्रस्तुत की और अधिक तापमान सहन करने वाली प्रजातियों के विकास पर जोर दिया।

*आईसीएआरडीए के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ. शिव कुमार अग्रवाल* ने मसूर एवं चना अनुसंधान में सहयोग का आश्वासन दिया।

 

 

“वैज्ञानिकों को आनुवांशिक क्षमता बढ़ानी होगी” – कुलपति

 

समापन सत्र में कुलपति डॉ. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि दलहनी फसलों की उत्पादकता में स्थायित्व आ गया है, इसलिए वैज्ञानिकों को ऐसी प्रजातियों का विकास करना होगा जिनकी आनुवांशिक क्षमता वर्तमान से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक हो।

 

*”बुंदेलखण्ड दलहन उत्पादन का हब बन सकता है” – आईआईपीआर निदेशक*

 

*भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (कानपुर) के निदेशक डॉ. जी.पी. दीक्षित* ने कहा कि बुंदेलखण्ड क्षेत्र दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने की अपार क्षमता रखता है और यह भारत को दलहन में आत्मनिर्भर बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

 

*बुंदेलखंड के दलहन उत्पादकों को मिलेगी नई दिशा- निदेशक शोध*

निदेशक शोध/ कार्यक्रम संयोजक डॉ सुशील कुमार चतुर्वेदी ने* विश्वास जताया की नई चिन्हित प्रजातियों एवं तकनीकियों के विकास से दलहन उत्पादन निश्चित रूप से बढ़ेगा।

तृतीय दिवस के प्रथम सत्र में दलहन अनुसंधान की मुख्य उपलब्धियों और प्राथमिकताओं पर चर्चा की गई।

द्वितीय सत्र में प्रगति रिपोर्ट, एफएलडी, टीएसपी तथा प्रजनक बीज उत्पादन कार्यक्रमों की समीक्षा की गई और वर्ष 2025-26 के लिए नए कार्यक्रम प्रस्तावित किए गए।

समापन सत्र में संचालन डॉ. अर्तिका सिंह ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन निदेशक शोध/कार्यक्रम संयोजक डॉ. सुशील कुमार चतुर्वेदी ने प्रस्तुत किया।

रिपोर्ट – मुकेश वर्मा/राहुल कोष्टा

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